शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

तुम बहुत अच्‍छी हो ....








कभी मां गौरेया कहती,

कभी कहती नन्‍हीं चिडिया

कभी कहती शैतान

मां के यह प्‍यारे

सम्‍बोधन सुनकर

मैं रह जाती हैरान

मेरी पलकों के सपने

जाने कब

वह अपनी आंखों में ले लेती

और मुझे सिर्फ

हौसला देती आगे बढने का

अपने पंखों में मुझको छुपा कर

मुझे हर तूफान से बचाती

और मेरे लिये तो

बस सारी दुनिया वही हो जाती

मेरे हर सवाल का जवाब

उसके पास होता था

सिवाय इस के

जब मैं भावुक होकर कहती

तुम बहुत अच्‍छी हो

तो एक मुस्‍कान के साथ कहती

बेटा हर मां

अपने बच्‍चे के लिये

अच्‍छी होती है

और हर बच्‍चा

अपनी मां का प्‍यारा होता है ...

बुरे तो बस हालात हो जाते हैं

जिनके आगे

हम लाचार हो जाते हैं ...।

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

मां सुनती है ...








मैं खामोश रहूं तो

मां सुनती है

मेरी खामोशी को

पहचानने की

कोशिश करती है

हर आहट को

लेकिन मेरे आवाज देने पर

वह खुद छुप जाती है

हंसी को दबाकर

मुस्‍कराती है

यह लुका छिपी का खेल

मेरे साथ

अक्‍सर खेलती है वह

और मैं तो

हर खेल में

मां को

जीतते हुये

देखना चाहती हूं

पर मेरा मन भी कभी

यह चाहता है

मां आवाज देकर मुझको बुलाये

और मैं छुप जाऊं ...............।।


मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

मां तुम ....








मेरी आंखे नींद से

बोझिल होती हैं पर

उनमें नींद नहीं आती

बिन तुम्‍हारे

कोई गीत गुनगुनाए ।

सुबह को बिन तुम्‍हारे

जगाये जागने का

मन नहीं करता

जब तुम

प्‍यार से कहती हो

ऊं साईं राम

बेटा उठ जाओ

मेरी बंद पलकों

में तुम्‍हारी छवि

समा जाती

मां तुम

खामोश मत रहा करो

तुम्‍हारा मौन

मुझे विचलित कर देता है ।